इन दिनों शहर और उसके आस-पास कुछ बड़े अखबारों के बैनर का लाभ उठाने वाले कुछ युवा अखबार प्रतिनिधियों ने जो स्थितियां पैदा कर दीं हैं शायद जबलपुर के इतिहास में अब से पहले कभी नहीं हुआ. जबलपुर जिले के पाटन,मंझौली,कटंगी,शहपुरा,बरगी-नगर,बरेला, धनपुरी,सिहोरा,कुण्डम,जैसे ग्रामीण क्षेत्र में कुछ संवाददाताओं ने जो मुहिम छेड़ रखी है उसका अर्थ क्या है सब आसानी से समझ सकतें हैं. इन के निशाने पर होते हैं छोटे तबके के कर्मचारी खास तौर पर शिक्षक, पंचायतों के सचिव, स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी,आंगनवाड़ी की महिलाएं, ऐसे पत्रकारों के निशाने पर राजस्व और पुलिस विभाग कभी कभार ही आ पाते हैं . एक स्वास्थ्य कर्मचारी ने बताया:- ये किसी की भी दीवार की पुताई कब कर दें कौन जाने ? सो कौन इनके मुंह लगे हमको भी इनकी इज़्ज़त आफ़जाई का हुनर आ गया है. हमें तो रोज़ ही रहना है यहां.....?
रोज़ अपनी रीडर शिप के आंकड़े छापने वाले अखबारों को अपने आत्म-चिंतन का वक्त आ गया है कि उनके छापे खाने से छप के बाहर निकलने वाली खबर में कितनी सचाई है. अखबारों के मालिकों/सम्पादकों ने यदि इस बात के चिंतन के लिए समय न निकाला तो वो दिन दिन दूर नहीं जब कि चौथा-स्तंभ भी संदेह के घेरे में आ जावेगा.और न्यूज़-चैनल्स की तरह अखबारों के लिये भी कहा पूछा जा सकता है:-"
चैनलों के रावण को कौन जलाएगा?"