Wednesday, October 27, 2010

आज की पत्रकारिता : खोजो बताओ इम्पैक्ट लाओ

आज़ की पत्रकारिता  अब सत्य नहीं वरन किसी दीवार को पोतने वाली भीड़ की पत्रकारिता नज़र आ रही है. इस में कोई शक नहीं कि भारत में  का स्वरूप अब जान लेवा होने जा रहा है. कुछ वर्षों पहले तक भारत में ऐसी हिंसक पत्रकारिता को कोई स्थान न था न तो छापे खानों में और न ही सम्पादकों के कक्षों में ही. अश्लीलता,शोषण,अपराध, की खबरों से रंगे अखबारों की दशा और दिशा अब अनियंत्रित हो चुकी है. जो लोग अफ़वाह प्रिय हैं उनके लिये अखबार भले ही बहुत प्रिय हों किंतु बुद्धिजीवी इनसे अब नफ़रत करने लगे हैं. इस बात की खबर किसे और कैसे दी जावे यह विचारणीय बिंदु है. हिंसक-पत्रकारिता पश्चिम से पूर्व की ओर आते हुए सबसे पहले  भारत के हिन्दी के कुछेक अख़बारों में समा गई.भविष्य की गर्त में छिपे सवालों का हल हमको खोजना ही होगा ...... 

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